आधुनिक हिंदी साहित्य में स्त्री अस्मिता के स्वर
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Hindi, Literature, PoemsAbstract
कहते हैं किताबें इंसान की सच्ची दोस्त होती हैं बात में दम है ऐसे वक्त में जब साया भी साथ छोड़ देता है वह आपका साथ नहीं छोडती है I किताबें आपको जीवन का उद्देश्य तलाश करने में मदद करती है.हिंदी साहित्य में महिलाओं की भागीदारी और योगदान महत्वपूर्ण रहा हैI आजादी के दौरान ज्यादातर साहित्य में देश प्रेम की भावना दिखती थी उषा देवी मित्रा, सरोजनी नायडू, महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चौहान आदि.
भारत कोकिला के नाम से प्रसिद्ध सरोजिनी नायडू का मानना था की भारतीय नारी कभी भी कृपा पात्र नहीं रही,वह सदैव समानता की अधिकारी रही हैI कांग्रेस प्रमुख चुने जाने के बाद उन्होंने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहां था,’’ अपने विशिष्ट सेवकों में मुझे मुख्य स्थान के लिए चुनकर आपने कोई विशेष उदाहरण नहीं दिया हैI आप तो केवल पुरानी परंपरा की और लौटे हैं और फिर से भारतीय नारी को उसके उस पुरातन स्थान पर ला खड़ा किया है जहां वह कभी थी’ नए परिवेश में पुरुष के साथ बराबरी से कंधा मिलाकर चलने, पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों में बदलाव के साथ व्यक्तिक चेतना ने महिला साहित्य में एक नए स्वर को जन्म दियाI अमृता प्रीतम, शिवानी, कृष्णा सोबती, निरुपमा सेवती,मेहरून्निसा परवेज,नासिरा शर्मा,ममता कालिया, मनीषा कुलश्रेष्ठ,वंदना राग ,अनामिका आज के लेखन ने नारी मूल्यों को नए सिरे से गढ़ा और एक नई पहचान दीI
स्त्री विमर्श एक ऐसा आंदोलन है जो पुरुष प्रधान समाज में नारी द्वारा अपने स्वाभिमान, अधिकार, स्वतंत्रता वह अस्मिता की तलाश में जारी एक संघर्ष को दिखाता है वैदिक काल में कन्या और पुत्र में भेद नहीं थाI यह भेद बाद में पैदा हुआI पुरुष और स्त्री सामाजिक सिक्के के दो पहलू हैं, जो एक दूसरे के पूरक हैI आज की स्त्री ने अपनी शक्ति को पहचानना शुरू कर दिया हैI जिसके कारण पुरुष वर्चस्व वाला समाज भयातीत हो गया हैI पुरुष प्रधान समाज में बड़ी चालाकी पूर्वक नारी को संपत्ति और सत्ता के उत्तराधिकार से वंचित कर दिया गया थाI समाज में रूढ़ियां इस इस कदर बढ़ गई थी की कन्या का जन्म बोझ बन गया थाI उससे जीने का अधिकार तक छिन गया थाI
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