भारतीय लोकतंत्र में साम्प्रदायिक राजनीति एक विश्लेषणात्मक अध्ययन

Authors

  • Dr. Vijay Singh Assistant Professor, Dept. of Political Science, Government Girls College, Alsisar, Jhunjhunu, Rajasthan

Keywords:

Communal, Democracy, Secular, Constitution, Equality

Abstract

सारांश:

आधुनिक शासन प्रणाली में लोकतंत्र सबसे अधिक लोकप्रिय शासन के रूप में विकसित हो चुका है। प्रजातांत्रिक शासन प्रणाली में विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में भारत को यह गौरवान्वित दर्जा प्राप्त है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में स्पष्टतया पंथनिरपेक्षता को स्वीकार किया गया है, 42 वें संविधान संशोधन के अन्तर्गत यह प्रावधान किया गया है। भारत की स्वतंत्रता साम्प्रदायिक विभाजन के दशं के साथ प्राप्त हुई, जिससे देश में धर्मनिरपेक्षता के भविष्य के लिए भी एक बहुत बड़ी चिंता की स्थिति उत्पन्न कर दी। परंतु भारतीय लोकतंत्र विकट परिस्थितियों के बावजूद निरंतर मजबूती से सुदृढता की ओर एक नया मुकाम हासिल करता रहा है। सदियों से जीओ और जीने दो तथा वसुधैव कुटुम्बकम की भावना ने भारत को शांति और सोहार्द के रूप में विश्व पटल पर नामित किया है, इसी भावना को संविधान में भी स्थान दिया गया, लेकिन ब्रिटिश शासन के द्वारा बोये गये साम्प्रदायिक बीज समय-समय पर अंकुरित होते रहे हैं। स्वतंत्र भारत में यद्यपि इस पर नियंत्रण करने के लिए कानूनी तरीकों को विशेष रूप से अपनाया गया परंतु राजनीतिक स्वार्थ के चलते साम्प्रदायिक मुद्दों को समय-समय पर हवा दी जाती रही है और वर्तमान में विशेष रूप से इसका दायरा बढता जा रहा हैं, जो भारतीय लोकतंत्र के लिए बहुत बड़ी चुनौती बन चुकी है। प्रजातंत्र में जाति धर्म की राजनीति को जब स्थान दिया जाने लगता हैं तो निश्चित रूप वह अपने मुल आदर्शो को खो देता है और साम्प्रदायिकता के ताण्डव को आमंत्रण मिल जाता हैं, जो किसी भी दृष्टि से स्वतंत्रता, समानता, भातृत्व व विकास का परिचायक नही कहा जा सकता है।

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Published

2023-02-13

How to Cite

Singh, V. . (2023). भारतीय लोकतंत्र में साम्प्रदायिक राजनीति एक विश्लेषणात्मक अध्ययन. AGPE THE ROYAL GONDWANA RESEARCH JOURNAL OF HISTORY, SCIENCE, ECONOMIC, POLITICAL AND SOCIAL SCIENCE, 4(2), 21–26. Retrieved from https://agpegondwanajournal.co.in/index.php/agpe/article/view/212