मध्यप्रांत में जनजातीय समाज सुधारक-राजमोहिनी देवी
Keywords:
Rajmohini Devi, Central provinces, TribalAbstract
अतीत से ही सामाजिक सुधार के जन आंदोलनों में संत महात्माओं की अह्म भूमिका रही है। समाज सुधार सदियों से होता आया है, जिसका परिणाम आज का सभ्य समाज है तथापि समाज में विसंगतियां व बुराईयों का होना भी अवश्यंभावी है। ऐसे में जब सरगुजा के आदिवासी समाज में अशिक्षा, मद्यपान और अंधविश्वास गढ़ कर चुकी थी। यह यहां के सामाजिक जागृति व चेतना के लिए ‘‘रजमन बाई’’ का आगमन हुआ बाद में इन्हें ‘‘राजमोहिनी देवी’’ के नाम से जाना जाने लगा।
राजमोहिनी देवी का जन्म सरगुजा के प्रतापपुर (वर्तमान में सूरजपुर जिले में) के शारदापुर ग्राम में जुलाई सन् 1914 ई. हुआ था। इनके पिता का नाम वीरसाय था जो एक गोंड़ आदिवासी कृषक थे तथा इनकी माता का नाम शीतला था।
राजमोहिनी देवी बचपन से ही अपने जीवनकाल में विपरीत परिस्थितियों का सामना किया। कम उम्र में ही उनका विवाह कर दिया गया था, विवाह के छः महिने बाद स्वास्थ्य खराब होने के कारण उन्हें अपने माता-पिता के पास आना पड़ा। पांच वर्षो के लम्बे उपचार के कारण पति ने उन्हें छोड़ दिया। परिणाम स्वरूप उनका दूसरा विवाह 15 वर्ष की आयु में वाड्रफनगर में स्थित ग्राम गोविन्दपुर के रंजीत सिंह से हुआ। परिवार अधिक सम्पन्न नहीं था।
राजमोहिनी देवी के 4 पुत्रियां और 4 पुत्र हुए परन्तु संतान सुख भी इन्हें अधक दिनों तक नहीं मिल पाया। एक के बाद एक संतानों की मृत्यु होने लगी। पहले पुत्र लखमन की 12 वर्ष में और दूसरी संतान घासी की विवाह के बाद मृत्यु हो गई। तीसरी पुत्री निराशा का विवाह रूपचंद से हुआ परन्तु कुछ दिन बाद उनकी मृत्यु हो गई । चैथी संतान बलदेव की मृत्यु 1996 में हो गई। छठी संतान मनुदेव की मृत्यु सन् 2005 सड़क दुघटना में हो गई। संतान की मृत्यु जन्म के बाद हो गई। सिर्फ पांचवी संतान ‘‘रामबाई’’ जीवित है जो राजमोहिनी देवी के आश्रम की साफ-सफाई एवं पजा अर्चना करती है। राजामेहिनी देवी के जीवन में यह दुःख सहन करना और पति का शराबी होना, इन्हीं कारणों से वजह से उनके जीवन में भी परिवर्तन आया जो सहायक रहा।
उनकी वेशभूषा अत्यंत साधारण थी। सफेद रंग की हरे या नीले किनारे की सूती साड़ी पहनती थी। राजमोहिनी देवी बहुत ही साधारण जीवन जीतीं थीं। उन्होंने जीवन पर्यंत दूर-दूर गांवांे में पैदल घूमकर आदिवासियों को संगठित किया और उन्हें गांधीवादी आदर्शों को अपनाने की प्रेरणा दी। उनहें अक्षर ज्ञान नहीं था किन्तु व्यवहारिक ज्ञान ने उन्हें समाज नेता के उच्च शासन पर प्रतिष्ठित कर दिया।
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