प्राचिन गोंड समाजके रिती-रिवाज और सामाजिक प्रभाव का अध्ययन

Authors

  • Dr. Surekha Kale Assistant Professor, Department of Social Science, Dadasaheb Despande Art, Science and commerce college, Wardha, M.S

Keywords:

Religion customs, Gond community

Abstract

चांदागढ़ यह गोंडवाना के दक्षिण भूभाग की राजधानी थी जिसकी सीमा वरंगल, कागजनगर, अदिलाबाद, कळंब, माहूरगढ़, पौनी, भंडारा तक थी । दक्षिण गोंडवाना में इ.स 870 से स्थापित गोंडवाना सत्ता एक ही आत्राम राजघराने में चलती आ रही है। और उनके वंशज वर्तमान में अपनी महत्ता को बनाए रखे हैं। संपूर्ण भारत देश में चंद्रपुर के गोंड राजा गोंडी धर्माधिकारी पद और राजा पद से विभूषित है। उनके राजपाट और धर्म सत्ता के अधिकार को मान्यता शासन द्वारा प्राप्त हुई है। गोंडराजाओं का दरबार न्याय प्रविष्ट वर्तमान सुप्रीम कोर्ट जैसा था। गोंडवाना का महान साम्राज्य 4 इकाई में 4 राजाओं द्वारा संचालित होता था। गढ़ा मंडला से चांदा गढ़ और देवगढ़ से छत्तीसगढ़ तक मध्य भारत (वर्तमान में) फैला था।
मानव वंश इतिहास को अगर देखा जाए तो, मूल अवस्था में मानव अन्य प्राणियों जैसा जीवन-यापन करता था। धीरे-धीरे स्टोन एज, कॉपर एज, ऐसी प्रगतिशील अवस्था को पार करते हुए लाखों साल के बाद आज वह आधुनिक अवस्था में आ पहुंचा है। गोंडवाना साम्राज्य स्थापना के पूर्व भी आदिमानवों की शक्ल में गोंड (कोया) इस धरती पर थे। जैसे जैसे सामाजिक जीवन के आवश्यकताओं के अनुसार आजीवन बसता गया यही गुट समूह आगे गण के रूप में प्रख्यात हुए । इन्हीं का सुधारित रूप गोंड गणों के देशों में होने लगा। गोंड गण ऑस्टेªलॉइड वंश के है, जो गोंडवाना भूभाग पर विस्तारित हुए। लॉरेशिया और गोंडवाना इन सिर्फ दो खंडों में मानव विभाजित हुआ, यह इतिहास का सत्य है। गोंड गणों ने अपने ट्राइब का नेतृत्व अपने हाथ में लेकर समाज रचना की शुरुआत की । हम किसी भी किस्से कहानियों मैं ना जाते हुए व्यापक तौर पर यह सोचेंगे कि, समाज निर्मित दौरान गणों के समूह निसर्ग को देवता मानकर देवता स्वरूप देते गए । जब गोंडवाना समूह अपनी धार्मिक मान्यता को स्थिर करने के लिए सामाजिक नीति व्यवस्था और धर्म नीति को आधार बनाते गए ।

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Published

2022-01-30

How to Cite

Kale, S. . (2022). प्राचिन गोंड समाजके रिती-रिवाज और सामाजिक प्रभाव का अध्ययन. AGPE THE ROYAL GONDWANA RESEARCH JOURNAL OF HISTORY, SCIENCE, ECONOMIC, POLITICAL AND SOCIAL SCIENCE, 3(1), 25–28. Retrieved from https://agpegondwanajournal.co.in/index.php/agpe/article/view/61