डॉ. भीमराव अम्बेडकर और सामाजिक न्यायः एक विश्लेषण
Keywords:
अस्पृष्यता, असमानता, आत्मोद्धार, अछूतोद्धार, सामाजिक न्याय, छुआ-छूत, शोषित पीड़ित, दलित समाज, शूद्रAbstract
डॉ. भीमराव अम्बेडकर ‘‘दया धर्म का मूल‘‘ सिद्धांत के प्रबल विरोधी थे, क्योकि ‘‘दया‘‘ में दूसरो को दयनीय और दया का पात्र बना देने का एक बड़ा दोष भी है। दुःखी मनुष्य का दुःख दूर करना पुण्य का परिचायक है किन्तु उसे दया का पात्र बना देना महापाप है। दया का पात्र बनते ही मनुष्य हीन भावना से भर उठता है। इसी दया धर्म की हीन भावना ने समाज में दलित- शोषित पीडि़त मनुष्य को समाज, समुदाय को अलग-थलग किया है किन्तु आज भी दया धर्म वाले करूणा,ममता,समता के दर्शन को नहीं समझ सके है और व्यवस्था में विसमता असमानता के विष ने भारतीयता और सामाजिकता को रक्त रंजित कर दिया है ।इसी का परिणाम द्वेष,अस्पृष्यता,असमानता,अराजकता और अलगाववाद है जिसने सामाजिकता की हत्या का जघन्य अपराध किया है और व्यवस्था मे विषमता असमानता के विष ने भारतीयता और सामाजिकता को रक्त रंजित कर दिया है जो सदियों से सामाजिक व्यवस्था के अभिन्न अंग बने हुए है। आत्मोद्धार और अछूतोद्धार के अनवरत प्रयासो पर्यन्त ही भारत ‘‘सत्यमेव जयतें‘‘ और अंहिसा परमोधर्म के सिद्वांतो को आत्मसात कर सकता है।
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