भगवद्गीता की वर्तमान समय में प्रासंगिकता एवं जीवन दर्शन

Authors

  • Ravi Kumar Meena Asst.Professor, Sanskrit Literature Government College, Sidhmukh (Churu), Rajasthan

Abstract

वर्तमान दौर में पूरी दुनिया में अशांति फैली हुई है। मनुष्य ने चाहे जितनी भी खोज की है अपनी सुख सुविधाओं के लिए लेकिन फिर भी उसको कहीं भी उसे सकून नहीं हैं। भौतिक भोग की वस्तुओं के अनावश्यक संग्रह से उसे झूठा ही सुख मिल पा रहा हैं । फिर युवा वर्ग ही क्या प्रत्येक वर्ग तनाव में जीवन यापन कर रहा है। गीता गुम हुए सुख को पुनः आत्मिक रूप में लेन का कम करती हैं । आत्मा चेतन रूप है । आधुनिक युग में गीता के द्वारा संतुलित जीवन को उपचार देने की आवश्यकता है। गीता योग अध्यात्म एवं जीवन प्रबंधन का महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है । आज के युवा को गीता का आत्मसात करने के लिए अर्जुन जैसा जिज्ञासा पात्र बनना पड़ेगा क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के अंतिम अध्याय में स्वयं कहा है कि गीता का रहस्यमय उपदेश किसी भी काल में तत्वरहित भक्तिविहीन और जिसकी सुनने में रूचि नहीं हैं और जो मेरे प्रति द्वेष भाव रखता हैं ऐसे लोगों को यह ज्ञान नहीं देना चाहिए। जो युवा गीता का गुरु के सानिध्य में श्रवण मनन करेगा वह मोक्ष रुपी परम लक्ष्य को भी प्राप्त कर सकता हैं।

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Published

2024-01-20

How to Cite

Meena , R. K. . (2024). भगवद्गीता की वर्तमान समय में प्रासंगिकता एवं जीवन दर्शन. AGPE THE ROYAL GONDWANA RESEARCH JOURNAL OF HISTORY, SCIENCE, ECONOMIC, POLITICAL AND SOCIAL SCIENCE, 5(1), 29–32. Retrieved from https://agpegondwanajournal.co.in/index.php/agpe/article/view/329