महावीर प्रसाद द्विवेदी और सरस्वती पत्रिका

Authors

  • Manju Jasail Research scholar, Shri. JJT University, Jhunjhunu, Churela, Rajasthan
  • Dr. Ram Kumar Shri. JJT University, Jhunjhunu, Churela, Rajasthan
  • Dr. Shakti Dan Charan Shri. JJT University, Jhunjhunu, Churela, Rajasthan

Keywords:

परिमार्जित, प्रवर्तक, नवजागरण, राष्ट्रप्रेम, खड़ी बोली, साकेत, यशोधरा

Abstract

महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने सरस्वती का संपादक का कर्तव्य निभाते हुए विभिन्न विषयों और प्रवृत्तियां के साथ भाषा के नवजागरण की प्रेरणा दी। उन्होंने काव्य की भाषा में प्रचलित ब्रजभाषा स्वरूप को त्यागकर उसके स्थान पर खड़ी बोली को अपनाने को प्रेरित किया। ‘सरस्वती‘ पत्रिका में द्विवेदी जी के एक निबन्ध से प्रेरणा पा कर मैथिलीशरण गुप्त ने साहित्य में चिर उपेक्षिता ‘उर्मिला‘ को ‘साकेत‘ के स्वरूप में प्रतिस्थापित किया। इस हेतु गुप्त जी ने द्विवेदी जी की ओर संकेत भी किया है-
‘‘करते तुलसीदास भी कैसे मानस नाद् ।
महावीर का यदि नहीं मिलता उन्हे प्रसाद।"
वास्तव मे ‘सरस्वती‘ का यह योगदान हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय रहा।

परिमार्जित, प्रवर्तक, नवजागरण, अर्थशास्त्र, राष्ट्रप्रेम, पुनर्जागरण, उदासीनता, प्रियतम, सुसज्जित, गवर्नमेंट, खड़ी बोली, सद्भाव, जागृति, उर्मिला, साकेत, यशोधरा आदि।

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Published

2022-05-20

How to Cite

Jasail, M., Kumar, R., & Charan, S. (2022). महावीर प्रसाद द्विवेदी और सरस्वती पत्रिका . AGPE THE ROYAL GONDWANA RESEARCH JOURNAL OF HISTORY, SCIENCE, ECONOMIC, POLITICAL AND SOCIAL SCIENCE, 3(4), 76–79. Retrieved from https://agpegondwanajournal.co.in/index.php/agpe/article/view/133