महावीर प्रसाद द्विवेदी और सरस्वती पत्रिका
Keywords:
परिमार्जित, प्रवर्तक, नवजागरण, राष्ट्रप्रेम, खड़ी बोली, साकेत, यशोधराAbstract
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने सरस्वती का संपादक का कर्तव्य निभाते हुए विभिन्न विषयों और प्रवृत्तियां के साथ भाषा के नवजागरण की प्रेरणा दी। उन्होंने काव्य की भाषा में प्रचलित ब्रजभाषा स्वरूप को त्यागकर उसके स्थान पर खड़ी बोली को अपनाने को प्रेरित किया। ‘सरस्वती‘ पत्रिका में द्विवेदी जी के एक निबन्ध से प्रेरणा पा कर मैथिलीशरण गुप्त ने साहित्य में चिर उपेक्षिता ‘उर्मिला‘ को ‘साकेत‘ के स्वरूप में प्रतिस्थापित किया। इस हेतु गुप्त जी ने द्विवेदी जी की ओर संकेत भी किया है-
‘‘करते तुलसीदास भी कैसे मानस नाद् ।
महावीर का यदि नहीं मिलता उन्हे प्रसाद।"
वास्तव मे ‘सरस्वती‘ का यह योगदान हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय रहा।
परिमार्जित, प्रवर्तक, नवजागरण, अर्थशास्त्र, राष्ट्रप्रेम, पुनर्जागरण, उदासीनता, प्रियतम, सुसज्जित, गवर्नमेंट, खड़ी बोली, सद्भाव, जागृति, उर्मिला, साकेत, यशोधरा आदि।
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Copyright (c) 2022 Manju Jasail, Dr. Ram Kumar, Dr. Shakti Dan Charan
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