भारतीय इतिहास में किन्नर

Authors

  • Dr. Ramanuj Pratap Singh Dhurve Asst. Professor - Dept. of History Govt. Bala Saheb Deshpande College, Kunkuri, Dist. Jashpur , Chattisgarh

Keywords:

Third Gender, Transgender

Abstract

इतिहास में जब मानवीय क्रियाकलापों का अध्ययन किया जाता है तो संपूर्ण मानव समाज को नर व मादा के रूप में विभक्त किया जाता है समाज में एक तबका और है, जिसकी विशेष चर्चा नहीं होती लेकिन प्रकृति ने हीं उसे मानव स्वरूप में ढाला है और वह है किन्नर जिसे ट्रांसजेंडर के रूप में भी जाना जाता है। भारत में किन्नरों को विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न नामों जैसे छक्का, हिजड़ा, खवाजासरस, नपुंसक आदि नामों से भी जाना जाता है। भारतीय इतिहास में किन्नर के प्राचींनतम साक्ष्य की बात करें तो ईसा पूर्व नवीं शताब्दी में मिलता है। भारत के प्राचीन धर्म हिंदू व जैन धर्म में भी तीन लिंगों की मान्यता दी गई है। इतिहास के रंगमंच पर किन्नर समुदाय का अस्तित्व वैदिक काल से ही है परंतु वर्तमान समय तक भी वे अपनी मुखर अभिव्यक्ति नहीं दे पाये है।

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Published

2025-01-20

How to Cite

Dhurve, R. (2025). भारतीय इतिहास में किन्नर. AGPE THE ROYAL GONDWANA RESEARCH JOURNAL OF HISTORY, SCIENCE, ECONOMIC, POLITICAL AND SOCIAL SCIENCE, 6(1), 39–43. Retrieved from https://agpegondwanajournal.co.in/index.php/agpe/article/view/405